Wednesday, September 19, 2007

"कर्ज़"- आनन्द बक्षी

दर्द -ऐ -दिल दर्द -ऐ -जिगर दिल में जगाया आपने
पहले तो में शायर था आशिक बनाया आपने

आपकी मदहोश नज़रें कर रही हैं शायरी
यह ग़ज़ल मेरी नहीं यह ग़ज़ल हाय आपकी
मैंने तो बस वोह लिखा जो कुछ लिखाया आपने
दर्द -ऐ -दिल दर्द -ऐ -जिगर दिल में जगाया आपने ...

कब कहाँ सब खो गई जितनी भी थी परर्छाइयाँ
उठ गई यारों की महफिल हो गई तान्हाइयां
क्या हुआ शायद कोई परदा गिराया आपने
दर्द -ऐ -दिल दर्द -ऐ -जिगर दिल में जगाया आपने ...

और थोड़ी देर में बस हम जुदा हो जायेंगे
आपको धून्दुन्गा कैसे रास्ते खो जायेंगे
नाम तक भी तो नहीं अपना बताया आपने
दर्द -ऐ -दिल दर्द -ऐ -जिगर दिल में जगाया आपने

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